SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 638
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रव्रजनादि विधि निरूपणम् कल्पसूत्रे हे श्रमण आयुष्मन् प्रव्रज्या लेनेवाला प्रव्रज्या लेते समय प्रथम तिक्खुत्तोके पाठ सशब्दार्थे के साथ सब निग्रंथोंको मुनियों को वंदना करे, नमस्कार करे तदनन्तर एक ॥६२२|| घोलपट्ट पहेरे उरो बंध [चदर] को ओढे एवं हे गौतम ! तत्पश्चात् साधुचिह्न मुहपत्तिको मुखके साथ बांधे । हे भगवन् मुहपत्तीका क्या प्रमाण है ? मुखके बराबर मुहपत्ती होनी चाहिए ? हे गौतम ! एक श्वेतवस्त्रकी आठ पुटवाली मुहपत्ती करनी चाहिए हे भगवन् मुहपत्ती आठ पडवाली होने का क्या कारण है ? हे गौतम ! आठ कर्मका नाश करने के लिए आठपुटवाली मुहपत्ती बनाई जाती है, उसे एक कानसे I दूसरा कान पर्यन्त के प्रमाण युक्त दोरा के साथ मुख पर बांधे। हे भगवान् किस कारण से मुहपत्ती इस प्रकार कही जाती है ? हे गौतम ! जो कायम मुख के ऊपर रहती है अतः उसको मुहपत्ती कहते हैं। हे भगवन् मुहपत्तीको दोरे के साथ क्यों बांधी जाती Fuil है ? साधुचिह्न होने से एवं वायुकाय जीव की रक्षा के लिए मुहपत्ती बांधनी चाहिए । ॥६२२॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy