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अखबस्त्रिका
प्रव्रजनादि
विधि
निरूपणम्
॥६२०॥
कल्पसूत्रे ।। गौतम! [अटुकम्मदहणट्टयाए] आठ कर्म दहन करने के लिये आठ पुटवाली मुखबस्त्रिका - सान्दार्थे
कही गई है उसके [एग्गकण्णओ] एक कान से [दुच्चकण्णप्पमाणेणं] दूसरे कान तक के प्रमाण युक्त [दोरेण सद्धिं] दोरे के साथ [मुहे] मुह के ऊपर [बंधेजा] बांधे फिर श्रीगौतम स्वामी पूछते हैं [से केणटेणं] किसकारण से [भंते] हे भगवन् [मुहपत्ति ति] मुख वस्त्रिका इस नामसे [पवुच्चइ] कही जाती है-हे गौतम ! [जण्णं] जो [मुह] मुख
के [अंते] पास [सइ] सदा [वदृति] रहती है [से तेणटेणं] उस कारण से [मुहपत्ति ति] . मुखवस्त्रिका इस नामसे [पवुच्चइ] कही जाती है फिर गौतम खामी पूछते है [कस्सट्रे] किस कारण से [भंते] हे भगवन् [मुहपत्तिं] मुखवत्रिका [दोरेण सद्धि] दोरेके साथ [बंधइ] बान्धी जाय ? भगवान् कहते हैं हे गौतम ! [सलिंग] अरिहंत के अनुयायियोंके लिंग [चिह्न] मुनिवेषके कारण और [वाउजीवरक्खणहाए] वायुकाय के जीवों की रक्षा के लिये मुख वस्त्रिका मुह पर बांधनी चाहिये। [जइ णं] जो [भंते] हे भगवन्
॥२०॥