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कल्पसूत्रे - सभन्दाथै ॥६१९॥
प्रव्रजनादि विधि निरूपणम्
। तदनन्तर [एग] एक [चोलपट्टगं] चोलपट्टक [धारेइ] धारण करे । [एगं] एक [उरोबंधणं] ऊरुबन्धन अर्थात् छाती और शरीर ढांकनेका वस्त्र [चदर] [धारे] धारण करे [तओ पच्छा] उसके पीछे [गोयमा] हे गौतम ! [सलिंगं] स्वलिंग-मुनिवेष के चिह्न स्वरूप [मुहपत्ति] मुखवस्त्रिका को [मुहेण सद्धि] मुख के साथ बांधे । गौतम स्वामी | पूछते हैं [भंते] हे भगवन् [मुहपत्तीणं] मुखवस्त्रिका का [किं पमाणे] क्या प्रमाण हैं ? [गोयमा] हे गौतम ! [मुह पमाणा] मुखके प्रमाण की मुहपत्ती, मुख वस्त्रिका होती है फिर गौतम स्वामी पूछते हैं भिंते] हे भगवन् [मुहपत्तीणं] मुखवस्त्रिका [केण वत्थेणं] | किस वस्त्र से [किज्जइ] की जाती है [गोयमा] हे गौतम ! [एगस्स वि] एक ही [सेयवत्थस्स f] श्वेतवस्त्र की [अट्ठपडलं] आठपुटवाली [मुहपत्तिं] मुखवस्त्रिका [करेज्जा] बनानी चाहिए फिर गौतम स्वामी पूछते हैं [कस्सटेणे] किस कारण से [भंते] हे भगवन् [मुहपत्तीणं] मुखवस्त्रिका [अटपुडला] आठपुटवाली कही है ? [गोयमा !] हे