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________________ शङ्का कल्पमत्रे l कैसे होती ? ऐसी स्थिति में प्रमाण माने हुए तुम्हारे वेदोंका कथन किस प्रकार मेतायसंशब्दार्थे म संगत होगा ? वेद के इस वाक्य से तो मोक्ष की सत्ता ही होती है । अतः मोक्ष है, प्रभासयोः ॥६०५॥ यह निस्सन्देह सिद्ध है । प्रभु के इस प्रकार के वचन सुनकर प्रभास भी छिन्नसंशय निवारणम् होकर अपने तीनसो शिष्यों के साथ प्रभु के पास प्रवजित हो गये इन ग्यारह गणधरों प्रव्रजन च के संशय के विषय में दो संग्रहणी गाथाएं हैं (१) इन्द्रभूति को जीव के विषय में संशय था । (२) अग्निभूति को कर्म के विषय में संशय था। (३) वायुभूति को वही जीव है और वही शरीर है, ऐसा संशय था। (४) व्यक्त को पांचभूतों के विषयमें संशय था। (५) सुधर्मा को यह संशय था कि जो जीव इस भवमें जैसा है, परमव में भी वैसा ही जन्मता real है । (६) मण्डिक को बन्ध और मोक्ष के विषय में संशय था। (७) मौर्यपुत्रको देवोंके । अस्तित्व के विषयमें संशय था। (८) अकम्पित के नारकों के विषयमें संशय था । (९) l | अचलभ्राता को पुण्य पाप संबन्धि संशय था । (१०) मेतार्य को परलोक में संशय था । US
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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