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कल्पसूत्रे - सशब्दार्थ
॥६०६॥
मेतार्यप्रभासयोः शङ्कानिवारणम्
और (११) प्रभास को मोक्षके अस्तित्व में संशय था। इन्द्रभूतिसे लेकर प्रआस तक यह ग्यारहों गणधर अपना अपना संशय दूर होने पर गणधरता-गणधरपदवी की प्राप्त हुए । कौन गणधर कितने शिष्यों के साथ दीक्षित हुए, यह बतलाने वाली संग्रहणी गाथाएं है-इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, व्यक्त और सुधर्मा इन पांच गणधरोंका प्रत्येकके पांच-पांचसौ शिष्यों का गण था। इनके बाद दो-मण्डिक और मौर्यपुत्र का प्रत्येक के साढे तीनसौ शिष्यों का गण था। शेष चार अकम्पित, अचलभ्राता, मेतार्य
और प्रभास का तीन तीनसौ शिष्योंका समूह था । इस प्रकार प्रभु के पास सब मिलकर चौवालीससौ ग्यारह द्विज गणधरों के शिष्य भी दीक्षित हुए थे ॥२१॥
___ पाप परिहार और धर्म स्वीकार, तथा गणधरों का उद्दार
मूलम्-नमो चउवीसाए तित्थयराणं उसभाई महावीर पज्जवसाणाणं। इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अणुत्तरं केवलियं पडिपुन्नं नेयाउयं संसुद्धं
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