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________________ शङ्का कल्पसूत्रे || भावार्थ मेतार्य भी अपना संशय छेदन करने के लिये अपने तीनसौ शिष्यों मेतार्यसशब्दार्थे । के साथ प्रभु के समीप आये । भगवान्ने उनसे कहा-हे मेतार्य ! तुम्हारे मनमें यह प्रभासयोः ॥६०१॥ hal संशय विद्यमान है कि परलोक नहीं है, क्योंकि वेदों में कहा है कि विज्ञानघन आत्मा निवारणम् प्रव्रजन च | ही इन भूतों से उत्पन्न होकर फिर उन्हीं भूतों में लीन हो जाता हैं, अतः परलोक नहीं । है, इत्यादि [इस वाक्य का विवरण इन्द्रभूति के प्रकरण में किया जा चुका है, वहीं से Mill जान लेना चाहिये] हे मेतार्य ! ऐसा तुम मानते हो सो मिथ्या है । परलोक का IMil अवश्य अस्तित्व है । अगर परलोक न होता तो तत्काल जन्मे हुए बालकों को माता के स्तन का दूध पीने की बुद्धि कैसे होती ? परलोक स्वीकार करने पर तो पूर्वभव के || दुग्धपान का संस्कार से माताका स्तनपान करने की चेष्टा संगत हो जाती है । तुम्हारे सिद्धान्त में भी कहा है-हे अर्जुन ! जीव मरणकाल में जिन-जिन भावों का स्मरण चिन्तन करता हुआ शरीरका परित्याग करता है, वह अन्तिम समयमें चिन्तन किये
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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