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कल्पसूत्रे }} सशब्दार्थे ||६००॥
[ परलोए ] मेतार्यको परलोक के विषय में और [तह य होइ निव्वाणे] प्रभास को मोक्षके विषय मे संशय था [ एगारसावि संशयच्छेए पत्ता गणहरतं ] इइ' संशय के दूर होने पर गणधर - पदको प्राप्त हुए [को गणहरो कइसंखेहिं पव्वइओ त्ति पडिवाइया संग्रहणी गाहा - ] कौन गणधर कितने शिष्यों के साथ दीक्षित हुए यह प्रतिपादन करनेवाली संग्रहणी गाथा यह है - [पंचसयो पंचहे इन्द्रभूति से सुधर्मा तक के पांच गणधर पांचसौ शिष्यों के साथ प्रव्रजित हुए [दोपहं चिय होइ सद्ध तिसयो य] मण्डिक और मौर्यपुत्र साढे तीन सौ शिष्यों के साथ प्रब्रजित हुए [सेसाणं च चउण्हं तिसय तिसओ Tas गच्छो] शेषचार अकंपित, अचल भ्राता, मेतार्य और प्रभास तीन सौ शिष्यों के साथ प्रव्रजित हुए । [ एवं पहुलमीवे सब्वे चोयालसया दिया पव्वइया ] इस प्रकार चवा - लीससौ ग्यारह की संख्या मे प्रभु के समीप दीक्षित हुए, जिस तरह इन्द्रभूतिने दीक्षा ग्रहण की उसी प्रकार सभी गणधरोने अपने अपने परिवार के साथ दीक्षा ग्रहण की ॥ २१ ॥
तार्य - प्रभासयोः
शङ्कानिवारणम्
प्रव्रजनं च
॥६०० ॥