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प्रव्रजनं च
१. कल्पसूत्रे | छिन्नसंसओ पभासोवि तिसयसीसेहिं पव्वइओ] इस प्रकार सुनकर प्रभास भी संशय |
IIT मेतार्यसशब्दार्थे निवृत्त होकर तीनसौ शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये।
प्रभासयोः ॥५९९॥
शङ्का[एत्थ संगहणी गाथा दुगं-] किस गणधरका कौन संशय था ? इस विषयमें यहां 17 निवारणम दो संग्रहणी गाथाएँ है-[जीवे] इन्द्रभूति को जीवके विषय में सन्देह था [कविसये] अग्निभूतिको कर्म के विषय में संदेह था [तज्जीवक तच्छरीरे] वायुभूति को तज्जीवतच्छरीर [वही जीव वही शरीर] के विषय में सन्देह था [भूते य] व्यक्त को पृथ्वी आदि पंचभूत के विषय में सन्देह था [तारिसय जम्मजोणी परे भवे] सुधर्मा को पूर्व भव के समान उत्तर भवके विषय में संदेह था [बंधमुक्खे य] मण्डिक को बन्ध मोक्षके विषयक सन्देह था [देवे] मौर्यपुत्र को देवों के विषयमें संदेह था [नेरइये] अकंपितको नारक के विषयमें संदेह था [पुण्णे] अचलभ्राता को पुण्य पाप के विषय में सन्देह था
॥५९९॥