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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
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प्रव्रजनं च
न होते तो देवलोक भी न होता। ऐसी स्थिति में 'स्वर्गलोक में जाता है' यह वाक्य मंडित
मौर्यपुत्रयो कैसे ठीक बैठ सकता है ? इस वाक्य को स्वीकार करने पर देवलोक और देवलोक में रहनेवाले देवों की भी सिद्धि हो गई। इस प्रकार आगम प्रमाण से देवों की सत्ता का निवारणम् साधन करके अब प्रत्यक्ष प्रमाण से साधन करते हैं कि 'शास्त्रवचनों को जाने दो, तुम इस परिषदा में बैठे हुए इन्द्र आदि देवों को प्रत्यक्ष देख लो'। इस प्रकार प्रभु के वचन सुनकर तथा उहापोह करके विशेष रूप से हृदय में निश्चित करके मौर्यपुत्र सन्देह ॥ रहित होकर साढे तीनसौ शिष्यों सहित दीक्षित हो गये ॥१८॥ __ मूलम्-मोरियपुत्तं पव्वइयं सुणिउं अकंपिओ चिंतेइ-जो जो तस्स समीवे गओ सो सो पुणो न निव्वत्तो। सव्वेसिं संसओ तेण छिन्नो। सव्वे वि य पव्वइया। अओ अहंपि गच्छामि संसयं छेदमित्ति कटु तीसयसीससहिओ ॥५८०॥