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________________ मंडित ...कल्पसूत्रे सशब्दार्थ ॥५७९॥ मौयपुत्रयोः शङ्कानिवारणम् । प्रव्रजनं च शंका-अग्निभूति द्वारा किये गये कर्म-विषयक संशय से इस संशय में क्या - अन्तर है ? समाधान-अग्निभूति को कर्म के अस्तित्व में ही सन्देह था। पर मण्डिक कर्म का अस्तित्व तो मानते थे। किन्तु जीव और कर्म के संयोग के संबंध में शंकित थे। यही दोनों में अन्तर है। मण्डिक को दीक्षित हुआ सुनकर मौर्यपुत्र भी अपने संशय का निवारण करने के लिये अपने तीनसौ पचास शिष्यों के साथ भगवान् के समीप पहुंचे। उन्हें भी भगवान् ने आगे कहे वचन कहेहे मौर्यपुत्र ! तुम्हारे मन में ऐसा संशय है कि देव नहीं है। इस विषय में प्रमाणरूप | से प्रयुक्त वचन प्रकट करते हैं-'माया के समान मिथ्या इन्द्र, यम, वरुण और कुबेर vil आदि देवों को कौन देखता है ?' इस कथन से देव नहीं है, ऐसा सिद्ध होता है। किन्तु तुम्हारा देवों को स्वीकार न करना मिथ्या है, क्योंकि वेद में ऐसा कहा है कि'यह यज्ञ रूपी शस्त्रवाला यजमान-यज्ञकर्ता शीघ्र ही स्वर्गलोक में जाता है। अगर देव ॥५७९॥ IRMEIN
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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