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| मंडित
मौर्यपुत्रयोः शङ्कानिवारणम् प्रव्रजन च
- कल्पसूत्रे ) भी कर्मों के साथ का अनादि सम्बन्ध अवश्यमेव छूट जाता है। इस विषय में तुम्हारे सशब्दार्थे ।
शास्त्र में भी कहा है-जब जीव 'यह पुत्रकलत्र आदि मेरे हैं, ऐसा मानते हैं तो ॥५७८॥
। ममता की रस्सी से बंधता है और जब जीव यह समझ लेता है कि 'पुत्रकलत्र आदि
मेरे नहीं हैं' तो ममत्व से रहित होकर मुक्त होता है। इसके अतिरिक्त भी बंध मोक्ष
का समर्थन करनेवाले बहुत से वचन तुम्हारे शास्त्र में विद्यमान है। कहा भी हैं। मनुष्यों के बंध और मोक्ष का कारण मन ही है, मन के अतिरिक्त और कोई कारण .. नहीं है। विषयो में आसक्त मन चार गति रूप संसार भ्रमण का कारण होता है।
तथा इन्द्रिय-विषयों की आसक्ति से रहित मन जीव के मोक्ष-भव भ्रमण के अन्त का कारण होता है। इससे सिद्ध हुआ कि जीव को बंध और मोक्ष होता है। इस प्रकार
सुनकर मण्डिक विस्मित हुए । उनका संशय दूर हो गया। वह प्रतिबोध प्राप्त करके I अपने साढे तीनसौ शिष्यों के साथ दीक्षित हो गये।
SAMBAHADESH
॥५७८॥