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मंडित
कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥५७७॥
मौर्यपुत्रयोः
शङ्कानिवारणम् प्रव्रजनं च
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है वह सदैव बना रहता है, अतएव अनादि कालीन जीव का बंध नष्ट नहीं होना चाहिये। | अब दूसरे विकल्प का खंडन करने के लिये कहते है-अगर जीव का बंध पश्चात् उत्पन्न
हुआ है तो वह किस समय हुआ ? और किस प्रकार छूटता है ? इस प्रश्न का कोई समाधान नहीं है । अतएव सिद्ध हुआ कि जीव को बंध और मोक्ष नहीं होता। यह जो तुम्हारा मत है सो मिथ्या है, क्योंकि लोक में प्रसिद्ध है कि जीव अशुभ कर्म-बंधन के कारण, उस कर्म जनित दुःख के भागी देखे जाते हैं, और शुभ कर्म बंध के कारण जीव सुख के भागी देखे जाते हैं । तथा ध्यान रूपी अग्नि से समस्त कर्म समूह को | भस्म कर देने के कारण, जीव सुख और दुःख के कारण भूत शुभ एवं अशुभ कर्मों
से होनेवाले बंध का अभाव होने से मोक्ष प्राप्त करते हैं। तुमने कहा कि-अनादि || बंध छटता नहीं है, सो भी मिथ्या है । लोक में सोने और मिट्टी का परस्पर जो प्रवाह
की अपेक्षा से अनादि कालीन संबध है वह छूट ही जाता है। इसी प्रकार जीव का
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