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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥५६७॥
निवारणम प्रव्रजन च
जो कहा जाता है कि कारण के अनुरूप ही कार्य होता है वह सत्य है, परन्तु इतने से
IT सुधर्मावर्तमान भव का सादृश्य भविष्यत्कालिक भव में सिद्ध नहीं होता है। वर्तमान भव भिध पंडि:
तस्य शङ्काभविष्यत् भव का कारण होता है-यह जो मत है वह भ्रान्तिपूर्ण ही है। वर्तमान भव भविष्यद् भव का कारण नहीं होता है, परन्तु वर्तमान भव में जिस प्रकार के अध्यवसाय होते हैं, उस प्रकार के अध्यवसायरूप कारण के अनुसार ही जीव भविष्यत्कालिक भव सम्बन्धी आयु बांधते हैं और तदनुसार ही जीवों को भविष्यत्कालिक भव होता है । तथा कारण के अनुरूप कार्य स्वीकार करने पर गोमय (गोबर) आदि से । वृश्चिक आदि की उत्पत्ति की संभावना नहीं है, यह जो कहा जाता है, सो भी असंगत ह, क्योंकि गोबर आदि वृश्चिकादि के जीव की उत्पति में कारण नहीं है, किन्तु | उनके शरीर की उत्पत्ति में हो कारण । गोमयादिरूप कारण और वृश्चिकादि के शरीर रूप कार्य में सादृश्य है ही, क्योंकि गोबर आदि में रूप रसादि पुद्गलों के जो
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