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व्यक्तस्य
निवारणम् : प्रव्रजन च
कल्पसूत्रे चित् असत् मान भी लिया जाय तो भी जागृत अवस्था में दिखाई देनेवाले जिन - सशब्दार्थे
से पदार्थो में अर्थक्रिया होती है, उन्हें, किस प्रकार मिथ्या-असत् माना जा सकता है ? | इस के अतिरिक्त तुम्हारे प्रमाणभूत माने हुए वेद में भी तो पांच भूतों का अस्तित्व कहा है । यथा-पृथिवी देवता है, इत्यादि । जब वेदों में भी पांचों भूतों का अस्तित्व प्रतिपादन किया गया है तो यह सिद्ध हुआ कि पांचभूत है। यह कथन सामान्य | रूपसे श्रवण करके और इहापोह द्वारा विशेष रूपसे हृदय में निश्चित करके व्यक्त भी संशय निवृत होने पर पांचसौ शिष्यों के साथ भगवान् के समीप प्रवजित हो गये ॥१६॥ ___मूलम्-चउरो वि पांडिया पहुसमीवे पव्वइयत्ति सुणिय उवज्झाओ सुहम्माभिहो पंडिओ वि नियसंसयछेयणटुं पंचसयसिस्सपरिखुडो पहुस्स अंतिए समागओ। पहुय तं कहेइ-भो सुहम्मा तुज्झमणसि एयारिसो संसओ वट्टइ जो इह भवे जारिसों होइ सो परभवेवि तारिसा चेव होउं उप्पज्जइ, जहा
। ॥५५९॥