________________
.. संशब्दार्थ
.
T
कल्पसूत्रे । उनकी पारमार्थिक सत्ता नहीं है, उसी प्रकार जगत् में दिखाई देनेवाले विविध पदार्थो ! व्यक्तस्य
शङ्का9 की भी वास्तविक सत्ता नहीं है । वेद के उक्त वाक्य से इसी मत की सिद्धि होती है। ..
निवारणम् " तुम्हारा यह संशय मिथ्या है । अगर पांचोंभूतों का अभाव हो और यह जगत् शून्य- प्रव्रजनं च
रूप हो तो लोकमें प्रसिद्ध स्वप्न अस्वप्न के अर्थात्-स्वप्न के गजतुरगादि, अस्वप्न के गन्धर्व नगरादि पदार्थ क्यों अनुभव में आवे? आशय यह है कि तुम कहते हो कि यह सब जल-चन्द्र के समान भ्रान्त हैं, किन्तु कहीं न कहीं पारमार्थिक होने पर ही दूसरी । जगह उसकी भ्रान्ति होती है। आकाश में वास्तविक चन्द्र न होता तो जल में चन्द्रमा का भ्रम भी न होता । जगत् के पदार्थो को स्वप्न दृष्ट पदार्थो के समान कहना भी ठीक
नहीं, क्योंकि जागृत अवस्था में वास्तविक रूपसे पदार्थो का दर्शन न होता तो स्वप्न । 12 में वह कैसे दिखाई देते ? जिस वस्तुका सर्वथा अभाव है, वह स्वप्न में भी नहीं है।
दीखती । इसके अतिरिक्त स्वप्नदृष्ट पदार्थो में अर्थक्रिया नहीं होती, अतएव उन्हें कथं- ॥५५८॥
.