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व सकलं' इत्यादि अर्थात् सब कुछ स्वप्न के समान है। तुम्हारा यह विचार मिथ्या है। [जइ एवं ताहे भुवनसिद्धा सुमिणा सुमिण - पयत्था कहं दीसन्तु ?] अगर ऐसा हो तो ॥५६॥ ) तीन लोक में प्रसिद्ध स्वप्न- अस्वप्न गंधर्वनगर आदि पदार्थ क्यों दिखाई देते हैं ? [ वेएस वि वृत्तं पृथिवी देवता - आपो देवता' इच्चाइ, अओ पुढवी आइ पंच भूयाइ संति ति सिद्धं] वेदों में भी कहा है- 'पृथिवी देवता आपो देवता' अर्थात् पृथिवी देवता है, जल देवता है इत्यादि । अतः पृथिवी आदि पांच भूत हैं यह सिद्ध हुआ । [ एवं सोच्चा निसम्म छिन्नसंसओ वियत्तो.वि.पंच सयसीसेहिं पहुसमीबे पव्वइओ ] ऐसा सुनकर और हृदय में धारण करके जिनका संशय निवृत्त हो गया है, ऐसे वह व्यक्त भी अपने पांचसौ शिष्यों के साथ प्रभु के समीप प्रत्रजित हो गये ॥ १६ ॥
कल्पसूत्रे शब्दार्थे
भावार्थ:- वायुभूति के दीक्षित हो जाने के पश्चात् व्यक्त नामक ब्राह्मण ने विचार किया इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति, यह तीनों महापंडित तीन वेद ऋग्वेद,
व्यक्तस्य शङ्कानिवारणम् वजनं च
॥५५६॥