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कल्पयो । जीवो अथित्ति] इससे सिद्ध है कि जीव शरीरसे भिन्न और स्वतंत्र है [एवं वहुकयगुणेणं वायुभूतेः
शङ्कासशब्दार्थ - छिन्नसंसओ पडिबुद्धो बाउभूई वि पंचसयसिस्सेहिं पव्वइओ] प्रभु के इस प्रकार के
निवारणम् ॥५५०॥ ity कथन से वायुभूति का संशय छिन्न हो गया। वह प्रतिबुद्ध होकर पांचसौ शिष्यों के प्रव्रजनं च
साथ भगवान के पास प्रबजित हो गया ॥१५॥ . भावार्थ-'मेरे दोनों भाई महावीर स्वामी के समीप दीक्षित हो गये, ऐसा जान कर वायुभूति ब्राह्मण मन ही मन विचार करते हैं-सच है, श्रीमहावीर स्वामी सर्वज्ञ । मालूम होते है । यह उनकी सर्वज्ञता का ही प्रभाव है-कि मेरे दोनों भाई उनके समीप दीक्षित हो गये है। अतएव मैं भी उनके पास जाकर अपने मनके 'वही जीव वही
शरीर, अर्थात् जीव और शरीर विषयक एकता संबंधी संशयका समाधान प्राप्त करूं। {। इस प्रकार विचार कर वायुभूति भी अपने पांचसौ शिष्यों को साथ लेकर भगवान् के ।
समीप आये । भगवान् ने वायुभूति के नाम और संशयका उल्लेख करते हुए कहा-हे
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