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कल्पसूत्रे शब्दार्थे
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पहले देखी थी [एसो गंधो मए पुव्वं अग्घाओ] वह गंध मैंने पहले सूंघी थी, [एसोमहुरतित्ताइसो मए पुव्वं आसाइओ] वह मधुर और तिक्त रस मैने पहले चखा था [सो मिउकक्खडाइ फासो मए पुव्वं पुट्ठो आसी] वह कोमल या कठोर आदि स्पर्श मैने पहले छुआ था [एवं पयारो जो अणुहवो हवइ, सो जीवं विना कस्स होज्जा ] इस प्रकार का जो स्मरण होता है वह जीव के सिवाय किस को होगा [तुज्झ सत्थेवि वृत्तं ] तुम्हारे शास्त्र में भी कहा है-
सत्येन लभ्यस्तपसा ह्येष ब्रह्मचर्येण नित्यं ज्योतिर्मयो हि शुद्धो यं पश्यन्ति धीरा - यतयः संयतात्मानः] अर्थात् 'यह नित्य ज्योति स्वरूप और निर्मल आत्मा, सत्य तप ब्रह्मचर्य के द्वारा उपलब्ध होता है । जिसे धीर तथा संयतात्मा यति ही देखते हैं । [जइ सरीराओ अन्नो को वि जीवो न हवेज्जा ताहे सत्येन इइ कहं संगच्छेज्जा] यदि जीव पृथक् न हो तो यह कथन कैसे संगत होगा ? [अओ सिद्धं सरीराओ भिन्नो अन्नो
वायुभूतेः शङ्कानिवारणम्
प्रव्रजनं च
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