________________
• कल्पसूत्रे दार्थे
॥५४८ ॥
भिन्न कोई पदार्थ नहीं जो परलोक में जाता हो [विज्ञान घनएवैतेभ्यो भूतेभ्यः' इच्चाई draणं वि अतत्थेमाणं ] विज्ञान घनएवैतेभ्यो भूतेभ्यः इत्यादि [पूर्वोल्लिखित ] वेद वचन भी इस विषय में प्रमाण है । अर्थात् पांचभूतों से यह आत्मा उत्पन्न होता है और पांचभूतों में ही मिल जाता है [ एत्थ goes सव्वपाणिणं देसओ जीवो पच्चक्खो अस्थि चेव] इसका समाधान यह है- सभी प्राणियों को देश से - अंशतः जीव का प्रत्यक्ष होता ही है [जओ सोमइआइगुणाणं पच्चक्खत्त• संविऊ अस्थि] वह जीव स्मृति आदि गुणों का साक्षात् ज्ञाता है [सो जीवो देहिंदियेहिंतों' अस्थि] वह जीव शरीर तथा इन्द्रियों से भिन्न है, [जओ जया इंदियाई Sarita सो तंतं इंदियत्थं सरइ] क्योंकि जीव, इन्द्रियों के नष्ट हो जाने पर भी इंद्रियो द्वारा जाने हुए विषयों का स्मरण करता है। [ जहा एसो सदो मए पुव्वं सुणिओ ] जैसे - वह शब्द मैंने पहले सुना था [ एयं वत्थुजायं मए पुव्वं दि] वें वस्तुएं मैंने
वायुभूतेः शङ्कानिवारणम् प्रत्रजनं च
॥५४८॥