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अग्निभूतेः कल्पसंत्रे कारण ही, विचित्र कर्मवाले प्राणियों के सुखदुःख आदि विचित्र भाव उत्पन्न होते हैं,
शङ्कासशब्दाथै, क्योंकि कोई जीव राजा होता है, कोई घोडा होता है और कोई हाथी होता है। घोडा ॥५४०॥
या हाथी होकर राजा का वाहन बनता है। कोई जीव उस राजा का प्यादा होता है । प्रवजनं च
और कोई उसका छत्रधारक-उस पर छत्र तानने वाला होता है। इसी प्रकार कोई जीव । भूख से पीडीत होता है, जो अपने कर्म की विचित्रता के कारण दिन और रात भीख के लिये भटकता फिरता है, फिर भी भीख नहीं पाता। तथा-एक ही समय में व्यापार । करनेवाले नौका-व्यापारियों में से एक सकुशल समुद्र से पार हो जाता है और दूसरा ।
समुद्र में ही डूब जाता है। इन सब विचित्र कार्यो का कारण कर्म ही है, कर्म के । सिवाय और कुछ भी प्रतीत नहीं होता। 1 शंका-पूर्वोक्त विचित्र कार्य स्वभाव से ही होते हैं अतएब कर्म को उनका कारण मानना .
व्यर्थ है। समाधान-तुम खभाव को विचित्र कार्यो का कारण कहते हो तो बताओ कि ॥५४०॥