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भग्निभूतेः
करपपत्रे सशन्दायें ॥५४॥
निवारणम् प्रव्रजनं च
स्वभाव क्या है ? वह कोई वस्तु है या अवस्तु ? अगर अवस्तु है तो उससे कार्यों की उत्पत्ति नहीं हो सकती । वस्तु है तो मूर्त है या अमूर्त ? अगर अमूर्त है तो तुम्हारे मतानुसार वह मूर्त कार्यों को उत्पन्न नहीं कर सकता। अगर मूर्त हे तो फिर वह कर्म हो । इसी बात को मनमें लेकर कहते हैं-'नो खलु' इत्यादि । घटपट आदि कोई भी कार्य कारण के विना उत्पन्न नहीं हो सकता। कारण से ही कोई कार्य उत्पन्न होता है। अतः जीवों के राजा होने आदि विचित्र कार्यो का कारण कर्म स्वीकार करना चाहिये। इस प्रकार कर्म की सत्ता सिद्ध करके अब मूर्त कर्म और अमूर्त जीव का संबंध युक्ति |
से सिद्ध करते हैं-'अहय' इत्यादि । जैसे मूर्त घटका अमूर्त आकाश के साथ सम्बन्ध il होता है, उसी प्रकार मूर्त कर्म का अमूर्त जीव के साथ संबंध समझ लेना चाहिये।
अथवा जैसे नाना प्रकार के मूर्त मयों के द्वारा जीव उपघात (विरूपता आदि दोषों की उत्पत्ति होने से हानि) होती है कहा भी है
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