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- कल्पसूत्रे
शङ्का
सन्देह रहता है कि कर्म है अथवा नहीं है ?' बेद का वचन है कि-'पुरुषएवेदं । अग्निभूतेः सशब्दार्थे , सर्वं यद् भूतं यच्च भाव्यम्'। इस वाक्य का आशय है कि यह जो वर्तमान है, जो भूत
निवारणम् ॥५३८॥
है और जो भावी है, वह सभी वस्तु पुरुष (आत्मा) ही है। यहां 'पुरुष' शब्द के पश्चात् । प्रजनं चे प्रयुक्त हुआ 'एक' (ही) कर्म आदि वस्तुओं का निषेध करने के लिये है, तो अभिप्राय यह निकला कि पुरुष के अतिरिक्त कोई भी वस्तु नहीं है । इत्यादि वेद वचन के अनु
सार जो हुआ, जो है और जो होगा, वह सब वस्तु आत्मा ही है। आत्मा से भिन्न { अन्य कोई पदार्थ नहीं है, अतएव कर्म का भी अस्तित्व नहीं है। कर्म होता तो
प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से उसकी प्रतीति होती, किन्तु प्रत्यक्ष आदि किसी भी प्रमाण
से कर्म की प्रतीति नहीं होती । फ़िर भी कदाचित् कर्म का अस्तित्व मान लिया जाय : तो मूर्त फर्म के साथ अमूर्त जीव का संबंध किस प्रकार हो सकता है ? मूर्त और - अमूर्त का आपस में संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त अमूर्त आत्मा का मूर्त कर्म से ॥५३८॥