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________________ करपात्रे ।। आत्मा ही है, कर्म नहीं। [जइ कम्मं भवे ताहे पच्चक्खाइप्पमाणेण तं लब्भं सिया] । अग्निभूतेः शङ्कासभन्दार्थे यदि कर्म होता तो प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से उसकी उपलब्धि होती [तं नत्थि ? निवारणम् ।। ५३४॥ । जइ कम्मं मण्णिज्जइ ताहे तेण मुत्तेण कम्मुणा सह अमुत्तस्स जीवस्स कहं संबंधो प्रव्रजनं च हवेज्जा ?] परन्तु उपलब्धि नहीं होती अतः कर्म नहीं है यदि कर्म माना जाय तो मूर्त कर्म के साथ अमूर्त जीव का संबंध कैसे हो ? [अमुत्तस्स जीवस्स मुत्ताओ कम्माओ - उवघायाणुग्गहा कहं होउं सक्किज्जा ? ] मूर्त कर्म से अमूर्त जीव का उपघात और । अनुग्रह कैसे हो सकता है ? [जहा आगासो खग्गाइणा न छिज्जइ] जैसे आकाश खड्ग .. आदि से नहीं काटा जा सकता [चंदणेण नोवलिविज्जइ ति] और चन्दन आदि से ... लिप्त नहीं किया जा सकता [तं मिच्छा] किन्तु इस प्रकार सोचना मिथ्या हैं [अइ .. सयणाणिणो कम्म पञ्चक्खत्तणेण पासंति] अतिशय ज्ञानी प्रत्यक्ष प्रमाण से कर्मों को ... देखते हैं [छउमत्थाउ जीवाणं वेचित्तं पासिय तं अणुमाणेण जाणंति] और असर्वज्ञ ॥५३४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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