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________________ SCS करपात्रे Lil [अहुणा अहं गच्छामि] अब मैं जाता हूं [असवण्णुं अप्पाणं सव्वण्णुं मण्णमाणं तं | II अग्निभूतेःसभन्दाथै All धुत्तं पराजिणिय] और असर्वज्ञ किन्तु अपने आपको सर्वज्ञ माननेवाले उस धूर्त को MINS निवारणम् TV पराजित कर वे [मायाए वंचियं मज्झभायरं पडिणियट्टे] माया से ठगे हुए अपने भाई प्रव्रजनं च इन्द्रभूति को वापिस लाता हूं। [मित्तिवियारिय पंचसयसिस्सेहिं -परिवुडो सगव्वं पहुiral समीवे पत्तो] इस प्रकार विचार करके वह अपने पांचसो शिष्यों के साथ गर्व सहित प्रभु के पास पहुंचा [तं भगवं नामसंसयनिदेसपुव्वं संबोहिय एवं वयासी-] भगवानने उनके नाम और संशय का उल्लेख कर के संबोधन करते हुए कहा [भो | अग्गिभूई ! तुज्झ मणंसि कम्मविसए संसओ वइ] हे अग्निभूति ! तुम्हारे मन में कर्म के विषय में संशय है (जं कम्मं अत्थि वा णत्थि] कि कर्म है या नहीं है ? ('पुरुषएवेदं सर्वं यद्भूतं यच्चभाव्यं' इच्चाइ वेयवयणाओ सव्वं अप्पाचेव न कम्म) यह सब पुरुष ही है जो है, हो चुका है और जो होनेवाला है। इस वेद वचन से सब कुछ ॥५३३॥ till... ... .
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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