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कल्पसूत्रे । गौर वर्णथा जैसे स्वर्ण के खंड की कसोटी पर घिसने से सुनहरी और चमकती
शङ्कासशन्दाये - हई रेखा होती है, अथवा जैसे कमलका किंजल्लक होता है। अभिप्राय यह कि
निवारणम् ॥५२८॥
उनका शरीर कसोटी पर घिसे स्वर्णकी रेखा और कमल के केसर के समान चमकीला प्रतिवोधश्च
एवं गौर वर्णका था । अथवा कसोटी पर घिसे स्वर्ण की अनेक रेखाओं के समान । गोरे शरीरवाले थे। बढते हुए परिणामों के कारण तथा पारणादि में विचित्र प्रकार
के अभिग्रह करने के कारण उनका अनशन आदि बारह प्रकार का तप उत्कृष्ट था,
अतः वे उग्रतपस्वी थे। बढी हुई तपस्यावान् होने से दीप्त तपस्वी थे अधिक तपस्या । | करने के कारण महातपस्वी थे! प्राणीमात्र के प्रति मैत्री भाव रखने के कारण !! उदार थे। परीषह, उपसर्ग एवं कषाय रूपी शत्रुओं को नष्ट करने में भयानक होने
से घोर थे। वह घोर (कायरों द्वारा दुष्कर) मूल गुणों से युक्त होने से घोर गुणवान् । 1 थे: दुश्चर तपश्चरण के धारक थे। कायर जनों द्वारा आचरण न किये जा सकने योग्य
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