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कल्पसूत्रे शब्दार्थे
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लगे । उसकाल और उस समय में गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति अनगार श्रमण भगवान् सबसे प्रथम - शिष्य हुए। वह कैसे थे सो कहते हैं वह ईर्यासमित अर्थात् र्याम से युक्त थे इसी प्रकार भाषा समिति, एषणा समिति, आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणा समिति थे, उच्चारप्रस्रवण श्लेष्मशिङ्घाणजल्ल परिष्ठापनिका समिति थे, मनःसमिति थे, वचन समिति थे, मनोगुप्त अर्थात् मनोगुप्ति से युक्त थे, इसी प्रकार वचनगुप्त थे, कायगुप्त थे, गुप्त थे गुप्तेन्द्रिय थे गुप्तब्रह्मचारी थे । इर्यासमिति से लेकर गुप्तबह्मचारी तक के पदों का अर्थ १७४ वे सूत्रकी टीका के हिन्दी भाषानुवाद से जान लेना चाहिये । वह त्यागी - त्यागशील थे वन में जो लाजवंती नामक वनस्पति होती है, उसके समान पापमय व्यापारों से लज्जाशील संकोचशील थे । बेला तेला आदि की भी तपश्चर्या से युक्त थे। क्षमाशील होने के कारण दूसरों के द्वारा कृत अपकारों को सह लेते थे । इन्द्रियों को वश में कर चूके थे । अन्तःकरण के शोधक थे ।
इन्द्रभूतेः
शङ्कानिवारणम् प्रतिबोधच
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