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कल्पसूत्रे शब्दार्थे
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उक्त वेदवाक्य का तुम्हारा जाना हुआ अर्थ यह है - 'घने आनन्द' आदि स्वरूप होने के कारण विज्ञान ही विज्ञान घन कहलाता है । वह विज्ञान घन ही प्रत्यक्ष से प्रतीत होनेवाले पृथ्वी आदि भूतों से उत्पन्न हो कर भूतों में ही अव्यक्त रूप से लीन हो जाता है । मृत्यु के बाद फिर जन्म लेना प्रेत्य कहलाता है । ऐसी प्रेत्य संज्ञा अर्थात् परलोक संज्ञा नहीं है।' इससे तुम मानते हो कि जीव नहीं है । इस वाक्य का वास्तविक अर्थ यह है, ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग रूप विज्ञान विज्ञानघन कहलाता है । विज्ञान से अभिन्न होने के कारण आत्मा विज्ञानघन है । अथवा आत्मा का एक प्रदेश अनन्त विज्ञान पर्यायों का समूह रूप है, इस कारण आत्मा विज्ञान घन ही है। यह आत्मा अर्थात् विज्ञानघन भूतों से उत्पन्न होता हैं क्योंकि घट के कारण आत्मा घट विज्ञान रूप परिणति से युक्त होता है क्यों कि घट विज्ञान के क्षयोपशमका अर्थात् घट विज्ञान के आवरण के क्षयोपशम का वहां आक्षेप होता
इन्द्रभूतेः शङ्का
निवारणम् प्रतिबोधथ
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