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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥५१९॥
सुखकारिणी और मधुरवाणी से बोले । भगवान के द्वारा किया गया अपने नाम और . इन्द्रभूतेः
शङ्कागोत्रका उच्चारण सुनकर इन्द्रभूति के मन में अत्यन्त आश्चर्य हुआ। वह सोचने
निवारणम् लगे कि महावीरने मुझ अपरिचित का नाम गोत्र कैसे जाना ? ऐसा सोचकर फिर प्रतिबोधश्च इन्द्रभूतिने अपने मनमें समाधान कर लिया कि मेरा नाम गोत्र जान लेने में आश्चर्य क्या है? में जगत् में विख्यात हूं, और तीनों लोकों का गुरू है। कौन लालका युवक और वृद्ध है जो मेरा नाम न जानता हो ?, आश्चर्य तो तब गिनूगा जब यह मेरे मनमें जो संशय है, उसको कह दें और उसका निवारण भी कर दें। गौतम इन्द्रभूति यह सोच ही रहे थे कि भगवान्ने उनसे कहा हे गौतम इन्द्रभूति ! तुम्हारे मन में यह संदेह है कि जीव (आत्मा) का अस्तित्व है या नहीं हैं ? क्यों कि वेदों में भूतों से उत्पन्न हो कर उन्हीं में लीन हो जाता है, परलोक संज्ञा नहीं है' ऐसा | कहा है। मैं इस विषय में कहता हूं तुम वेद के पदों का वास्तविक अर्थ नहीं जानते। ५१९॥