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________________ कल्पसूत्रे परिहिय] और चोल पट्टको पहिरकर एवं [रयहरण गोच्छग पडिग्गहं धरीय] रजोहरण इन्द्रभूतेः सशब्दार्थ शङ्का-... गोच्छक एवं पात्रा को धारण करके [साहुवेसं गिण्हइ] साधुवेश को ग्रहण किया [तेणE MA ॥५१४॥ सुभेण परिणामेणं] यह शुभ परिणाम से [पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं] प्रशस्त अध्यवसाय प्रतिवोधश्चे से [लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं] विशुद्धयमान लेश्या से [तदावरणिज्जाणं कम्माणं] Sतदावरण कर्म के [खओवसमेणं] क्षयोपशम से [ओहिनाणे ओहिदंसणे समुप्पन्ने] इंद्रभूति को अवधिज्ञान एवं अवधिदर्शन की उत्पत्ती हुई] [तएणं से] तत्पश्चात् वे [जेणेव समणे भगवं महावीरे] जहां पर श्रमण भगवान् - महावीर स्वामी थे [तेणेव गच्छइ] वहां पर गया [गच्छित्ता] जा कर के [तिक्खुत्तो] : तीन बार [आयाहिण पयाहीणं करेइ] आदक्षिणा प्रदक्षिणा की [करित्ता] आदक्षिण प्रदक्षिणा करके [अलित्ते णं भंते ! लोए] यह लोक दुःखो से जल रहा है अर्थात् कषाय रूपी अग्नि से जल रहा है [पलित्तेणं भंते ! लोए] हे भगवन् यह लोक प्रदीप्त ॥५१४॥ . ..
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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