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निवारणम् प्रतिपोधश्च
कल्पसूत्रे इस प्रकार कह कर [समणं भगवं महावीरं] श्रमण भगवन् महावीरको [वंदइ नमसइ] सशम्दार्थे | वंदना नमस्कार किया [बंदित्ता नमंसित्ता] वंदना नमस्कार करके [उत्तरपुरथिम ॥५१३॥
Mall दिसीभायं] उत्तर पूर्व दिशा माने ईशानकोन में [अवक्कमइ] गया [अवकमित्ता] जाकर | के पोत्थयकमंडलं] पोथी एवं कमंडलु तथा [दब्भासणपियंवरा] दर्भासन एवं पीतांबर [जण्णोदेवीयं च] और यज्ञोपवीत को [एगंते एडेह] एकबाजु पर रखदिये [तए णं इंदभूई पमुहा माहणा] इन्द्रभूति आदि ब्राह्मणों ने [पंचमुट्टिलोयं करेंति] पंचमुष्टिक लोच किया [तएणं] तत्पश्चात् [सग्गाहिवे देविंदे देवराया] स्वर्ग के अधिपति देवेन्द्र देवराजने [पावयणं चोलपट्टसदोरयमुहपत्तिं] चद्दर चोलपट्ट-वस्त्र एवं सदोरक मुखवस्त्रिका [रयहरणं गोच्छगं] रजोहरण गोच्छक [पाडिग्गहं वत्थं च] पात्री एवं वस्त्र [पडिच्छिय] अर्पित किये [तए णं से इंदभूई पमुहा माहणा] तदनन्तर इन्द्रभूति आदि ब्राह्मणोने [मुहपत्तिं मुहे बंधिय] सदोरक मुंहपत्तिको मुखपर बांधी [चोलपटुं च
॥५१३॥
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