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कल्पसूत्रे विद्यमान है और जो भविष्य काल में होनेवाले तीर्थंकर भगवान् है वे सभी इस प्रकार भगवता
कथितसशन्दाथ 13 कहते हैं. इस प्रकार भाषण करते है, इस प्रकार की प्रज्ञापना करते हैं और इस प्रकार ॥५०२॥
की प्ररूपणा करते हैं-सभी प्राणी पृथिव्यादि स्थावर एवं द्वीन्द्रियादि पञ्चेन्द्रिय पर्यन्त ॥ के सभी प्राणी को सर्वभूत-हो गये, होनेवाले एवं वर्तमान में विद्यमान सभी भूतों को तथा सर्वजीव-जी गये, जीनेवाले एवं जीते हुए जीव मात्र को सर्व सत्व स्वकृत कर्म बल से होनेवाले सुखदुःख के अधिन सत्व को दंडा आदि से न हणे, उनको मारने के लिए आज्ञा न दें ये भृत्यादि मेरे ताबे में है ऐसा समझकर उन्हें दास न बनावे अन्नादि की रुकावट कर उन्हें पीडा न पहुंचावे इनका विषं शस्त्रादि से प्राणवियोग न करें न करावे। सभी जीवों के घात न करने रूप यही धर्म पापानुबंध रहित
होने से शुद्ध है। अविनाशी है । शाश्वत गतिवाला हैं। समस्त जीवों के दुःखों को । जानने वाले श्री तीर्थंकरोंने दुःखानल से संतप्त लोगों को केवलज्ञान से प्रत्यक्षकर ॥५०२॥