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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥५०३॥ 3033OOKCOO उनके दुःख की निवृत्ति के लिए कहा है, वह इस प्रकार है-धर्माचरण के लिए उद्यम • वाले के लिए, विना उद्यम वाले के लिए, मुनियों के लिए, एवं गृहस्थों के लिए, हिरण्य - सुवर्णादि अथवा रागद्वेषादि उपधिवाले के लिए तथा विना उपधिवालों के लिए पुत्रकलत्रादि परिवार में रत हुवे के लिए, एवं संयम में रत हुवे के लिए, यही धर्म तथ्य है यह जैसा तीर्थंकरोंने प्ररूपित किया है वैसा ही है - इसी धर्म में कोई विसंवाद नहीं है ॥१२॥ मूलम् - तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे तं इंदभूईभो गोयमगोत्ता इंदभूइत्ति संबोहिय हियाए सुहाए महुराए वाणीए भासीअ । भगवओं वयणं सोच्चा सो पुणो अईव चगियचित्तो जाओ अहो । अणेण मम णामं कहं णायं ? एवं वियारियं मणंसि तेण समाहिय किमेत्थ अच्छेरगं-जं I भगवताकथितधर्मकथा ॥ ५०३॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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