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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥४९६॥ न्यत्र दिक करने के लिये प्रचण्ड तर्क रूपी दंड धारण करनेवाले । हे वादियों के सिरके विकराल यज्ञवाटक परित्यज्याकाल । हे वादी रूपी कदलियों के खण्डखण्ड कर देने के लिए कृपाण। अर्थात् अनायास ही वादियों का मानमर्दन करनेवाले । हे वादी रूपी सघन अंधकार का निवारण देवगमनात् तत्रस्थिताकरने के लिए प्रखर सूर्य । हे प्रतिवादी रूपी गेहूं को पिस डालने के लिए चक्की के नामाश्चर्यासमान । हे प्रतिवादी रूपी कच्चे घडों के लिए मुद्गर के समान वादीयों की विद्वत्ता वणनम् को चुर-चुर करदेने वाले। हे वादी रूपी उलूकों के लिए सूर्य अर्थात् प्रतिवादियों की तर्क-दृष्टि को नष्ट कर देनेवाले। हे वादीरूपी वृक्षों को उखाड गिरानेवाले गजराज । अर्थात् वादियों का मानमर्दन करनेवाले । हे वादी रूपी दानवों का पराभव करनेवाले देवेन्द्र । हे प्रतिवादियों को अधिन करनेवाले नरेश । हे वादी रूपी कंस के लिए कृष्ण समान । हे अपने सिंहनाद से समस्त वादीरूप मृगों को भयभीत करदेने वाले सिंह। हे वादी रूपी ज्वर का निवारण करने के लिए ज्वरांकुश नामक औषध । हे वादियों के .. ॥४९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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