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कल्पसूत्रे
सशब्दायें
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यज्ञ.. कं परित्यज्यान्यत्र देवगमनात् तत्रस्थितानामाश्चर्यादिकवर्णनम्
सर्वज्ञत्व के घमंड को खंड कर दूंगा। हिरण की क्या शक्ति जो वह सिंह के साथ युद्ध करे ? इसी प्रकार अंधकार, सूय के साथ, पतंग अग्नि के साथ, चिउंटी सागर के साथ, सांप गरुड के साथ, पर्वत वज्र के साथ और मेढा हाथी के साथ क्या युद्ध कर सकता है ? नहीं, कदापि नहीं। इसी प्रकार वह धूर्त इन्द्रजालियों मेरे समक्ष क्षणभर भी नहीं टिक सकता। मैं अभी उस धूत के पास जाकर देवादिकों को भी छलनेवाले मायावी को परास्त करता हूं। सूर्य के सामने बेचारा जुगनू-आग्या क्या चीज है। कुछ भी तो नहीं। मुझे किसी दूसरे विद्वान् की सहायता की आवश्यकता नहीं। मैं अकेला ही उस धूर्त के छक्के छुडाने के लिए समथ हूं । अन्धकार का निवारण करने के लिए सूर्य क्या चन्द्रमा आदि की सहायता चाहता है ? नहीं। अतएव मैं अभी, इसी समय जाता हूं।' इस प्रकार कहकर होनेवाले शास्त्राथ म प्रमाण दिखलाने क लिए इन्द्रभूतिन अपने हाथ में पुस्तकें ली। कमण्डलु तथा कुशासन हाथ म लिए हुए, पीत
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