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________________ PREM न्यत्र . कल्पसूत्रे प्रधान व्रत नियम है। यह जिनों-राग-द्वेष को जीतनेवाले सामान्य केवलियों के यज्ञवाटकं परित्यज्यासशब्दार्थे ।। स्वामी हैं।' देवों की इस प्रकार की घोषणा को सुनकर, क्षणभर ऊंची श्वास लेकर, ॥४९२॥ । सब से पहले गौतमगोत्र में उत्पन्न इन्द्रभूति नामक ब्राह्मण के मनमें क्रोध उत्पन्न देवगमनात् तत्रस्थिताहुआ। होठ फडकने लगे अतः क्रोध प्रगट हो गया। उनके नेत्र क्रोध से लाल हो गये। नामाश्चर्यावह मिसमिसाने लगे-क्रोध से जलने लगे और इस प्रकार वचन बोले मेरे विद्यमान वर्णनम् रहते, यह दूसरा कौन पाखंडी और वितंडावादी है जो आप को सर्वज्ञ सब पदार्थों का ज्ञाता और सर्वदर्शी-सब पदार्थों को साक्षात्कार करनेवाला-कहलाता है ? लोगों के सामने ऐसा कहते उसे लज्जा नहीं आती ? जान पडता है, यह कोई कपटजाल रचनेवाला मायावी है। इस पाखंडीने सर्वज्ञता को प्रकट करनेवाला प्रपंच रचकर, इन्द्रजाल को फैलाकर देवों को भी छल लिया है-देव भी इसके चक्कर में आगये हैं। इसी कारण तो वे देव यज्ञ की (पावन) भूमि को और अंगोपांगो सहित वेदों के ज्ञाता मुझको १ ॥४९२॥ . . APAR
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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