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शक्रेन्द्रक्रततीर्थकरजन्ममहोत्सवः
जन्म
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कल्पमत्रे ।। सुहम्माए मेघोघरंसियगंभीरमहुर य सद्दा जोयणपरिमंडल सुघोसघंटा तेणेव उवासशब्दार्थे
गच्छइ २ त्ता तं मेघोघरसियगंभीरमहुर य सदं जोयण परिमंडलं सुघोसं घंटं तिखुत्तो उल्लालेई। तए णं तीसे मेघोघरसियगंभीरमहुरसदाए जोयणपरिमंडलाए सुघोसाए घंटाए तिखुत्तो उल्हालिआए समाणीए सोहम्मे अण्णेहिं एगूणेहिं बत्तीसविमाणावाससयसहस्सेहिं अण्णाई एगूणाई बत्तीसघंटासयसहस्साई जमगसमगं कणकणरावं काओ पयत्ताई विहुत्था तए णं से सोहम्मे कप्पे पासायविमाणनिवखुडा वडियसद्दसमुट्ठियप्पडिसुआ सयसहस्सं संकुले जाए आवि होत्था॥६॥ - भावार्थ-वह हरिणगमेषि नामक पदात्यानिक के अधिपति शक्र देवेन्द्र के पास से ऐसा सुनकर हृष्टतुष्ट होते हैं यावत् अहो देव ! वैसा करूँगा यों कहकर आज्ञा
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