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सशब्दार्थे
शक्रेन्द्रक्रततीर्थकर
जन्मl महोत्सवः
कल्पसूत्रे Sil को विनयपूर्वक सुनता है फिर शक देवेन्द्र के पास से निकलकर सुधर्मा सभा में आता
है वहां मेघ के गर्जारव समान गंभीर मधुर शब्द से एक योजन के परिमंडलीवाली ॥३९॥ Iril घंटा को तीन बार बजाता है तब उस मेघ घर में गंभीर मधुर शब्दका एक योजन में
प्रसार करने वाली सुघोष घंटा को तीन वक्त बजा ने से अन्य एक कम बत्तीस लाख विमान की उतनी ही घंटा के समूह का एक साथ कणकणाट शब्द होता है वही शब्द | सौधर्म देवलोक के विमान प्रासाद वगैरह जो गंभीर प्रदेश हैं वहां फैलता हुवा उसकी | प्रतिध्वनि से लक्षगम शब्द उस घंटा के हो जाते हैं।सू-६॥ | मूलम्-तए णं तेसिं सोहम्मकप्पवासीणं बहूणं विमाणिआणं देवाण य
देवीण य एगंतरइप्पसत्तणिच्चप्पमत्तविसयसुहमुच्छियाणं सुसरघंटारसिअ विउलबोलतुरियचवलबोहए कए समाणे घोसणकोऊहल दिण्णकण्णए मग्ग
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-|३९॥