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________________ शक्रेन्द्रक्रत तीर्थकर जन्ममहोत्सवः कल्पमत्रे सभा में जाकर मेघ के समान गंभीर मधुर शब्द करनेवाली एक योजन की विस्तारवाली सशन्दार्थे | सुस्वरवाली घंटा को तीन बार बजाते हुवे बडे २ शब्द से उद्घोषणा करो कि शक ॥३७॥ देवेन्द्र देवराजा आज्ञा करते हैं, शक देवेन्द्र देवराजा जम्बूद्वीप में भगवान् तीर्थकरका जन्म महोत्सव करने के लिए जाते हैं इससे अहो देवानुप्रिय! तुम भी सब ऋद्धि सब युति, सब समुदय और सब प्रकार की विभूति सहित सब विभूषा सब संभ्रम सब नाटक सब आरोह सब पुष्प, गंध, माला, अलंकार व विभूषा सब दीव्यत्रुटित शब्द सन्निपात महाऋद्धि यावत् शब्द सहित अपने २ परिवार से परवरे हुए अपने २ यान विमान पर बैठकर विलम्ब रहित शक्र देवेन्द्र के सन्मुख आवो ॥५॥ ___ मूलम्-तए णं से हरिणगमेसी देवे पायत्ताणियाहिवई सक्केणं देविदेणं देवरण्णा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुढे जाव एवं देवोत्ति आणाए विणएणं वयणं पडीसुणेई | २त्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरायस्स अंतियाओ पडिणिक्खमइ २ ता जेणेव सभाए ॥३७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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