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शक्रेन्द्रक्रततीर्थकरजन्ममहोत्सवः
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कल्पसूत्रे ।। जुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदयएणं सबायरेणं सव्वविभूइए सव्वविभूसाए सव्वसभन्दाथै
संभमेणं सव्वणाडएहिं सव्वरोहेहिं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारविभूसाए सव्वदिव्वतुडियसहसणिणाएणं महया इड्ढीए जाव रखेणं णिअयपरियालसंपखुिडा सयाइं २ जाणविमाणवाहणाई दुरूढा समाणा अकालपरिहीणं चेव सक्कस्स जाव अंतियं पाउब्भवह ॥मू०५॥ ___ भावार्थ--उस समय शक देवेन्द्र को ऐसा संकल्प उत्पन्न होता है कि जम्बूद्वीप में भगवान् तीर्थकरका जन्म हुआ है इससे अतीत वर्तमान व अनागत शक्र देवेन्द्र का यह जीताचार है कि भगवान् तीर्थंकरका जन्म महोत्सव करना इससे भगवान् तीर्थकरका जन्म महोत्सव करने को मैं भी जाऊँ ऐसा विचार करके हरिणगमेषी नामक पदात्यानिक के अधिपति को बोलाते हैं और कहते हैं कि अहो देवानुप्रिय ! सुधर्मा
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