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सोमिलाभिध ब्राह्मणस्य | यज्ञवाटकेदेवागमन कल्पनम्
कस्पसूत्रे दशों दिशाओं को उद्योतित करते हुवे विशेषरूप से प्रकाश युक्त होकर आते है। उन्हे सशब्दार्थ
देख कर यज्ञ स्थलमें स्थित यज्ञ का अनुष्ठान करने वाले सभी ब्राह्मण आपसमे इस ॥४७९॥
प्रकार कहने लगे इस प्रकार भाषण करने लगे इस प्रकार प्रज्ञापना करने लगे और इस | प्रकार प्ररूपण करने लगे-हे महानुभावो ! देखो यज्ञ के प्रभाव को यह देव और देवियां यज्ञको देखने के लिए और हविष्य को ग्रहण करने के लिए अपने अपने विमानो और अपनी-अपनी ऋद्धि के साथ साक्षात् आ रहे है वहां जो लोग उपस्थित थे वे यह आश्चर्य देखकर बोले यह ब्राह्मण धन्य है पुण्यवान् है और सुलक्षण है जिनके यह स्थान में साक्षात् देवो और देवियों का आगमन हो रहा है ॥१०॥
___ मूलम्-एवं परोप्परं कहमाणेसु समाणेसु एत्यंतरे ते देवा जन्नवाडयं Fill चइय अग्गेपट्ठिया। तं दट्टणं ते जन्नजाइणो माहणा निकंपा नित्तेया ओमं
॥४७९॥