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________________ ल्पसूत्रे सोमिला शब्दार्थे १७६॥ ब्राह्मणस्य यज्ञवाटकेदेवागमन कल्पनम् परोप्परं एवमाइक्खंति एवं भासति एवं पण्णवेंति एवं परूवेति--भो भो लोया! पासंतु जन्नप्पभावं, जेणं इमे देवा य देवीओ य जन्नदंसणटुं हविस्स गहणटुं च निय निय विमाणहि निय निय इड्ढीमाइहि सक्खं समावति। तत्थढ़िया लोया अच्छेरयमणुभविय एवं वइंसु जं इमे माहणा धण्णा कयकिच्चा कयपुण्णा कयलक्खणा य जेसिं जन्नवाडे देवा य देवीओ य सक्खं समावति॥१०॥ शब्दार्थ-[तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स देसणटुं च] उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर के दर्शन के लिये तथा धर्म देशना श्रवण करने के लिए [चउसर्हि इंदा] चौसठ इन्द्र तथा [भवणवइ वाणमंतर जोइसिय विमाणवासिणो देवा य देवीओ य निय निय परिवारपरिवुडा] भवनपति, वानव्यंतर, ज्योतिष्क और विमानवासी देव और देवियों अपने अपने परिवार से परिवृत्त होकर H ॥४७६॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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