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कल्पसूत्रे
ससन्दाथ
छन्द
वेदों में, पांच इतिहास में और छठे निघंटु [वैदिककोष ] में कुशल थे वे कल्प ज्योतिष व्याकरण निरूक्त तथा शिक्षा इन छहों अंगो सहित तथा रहस्य- सारांशसहित वेदों के स्मारक थे, अर्थात् अन्य लोगों को याद कराने वाले थे, वारक थे अर्थात् अशुद्ध उच्चारण करने वालों को रोकते थे और धारक थे अर्थात् इनके अभिधे अर्थ को धारण करने-समझने वाले थे छन्द आदि छहों अंगो के ज्ञाता थे सांख्य शास्त्र में निष्णात थे गणितमे, शिक्षण [अध्यापन] में शिक्षा में, कल्प में, व्याकरण शास्त्र - में छन्दशास्त्र में निरूक्त नामक वेद के अंग रूप शास्त्र में, ज्योतिष शास्त्र में तथा इनके अतिरिक्त दूसरे बहुत से ब्राह्मणों के शास्त्रों में और परिव्राजकों संबंधी आचार शास्त्र में अति निपुण थे । सब प्रकार की बुद्धियों में निपुण थे तात्कालिक बात को जानने वाली बुद्धि भविष्यत् की वातको समझने वाली मति और नयी नयी बात को खोज निकालने वाली सूझरूप प्रज्ञा इस तीन प्रकार की बुद्धि में उन्हे कुशलता प्राप्त
सोमिला
भिघ
ब्रह्मणस्य यज्ञवाटके समागतानेक ब्राह्मणनामानि
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