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________________ कल्पसूत्रे ॥४७३|| ब्रह्मणस्य और भी बहुत से उपाध्याय वहां इकट्ठे हुए थे। यथा [गग्ग] गार्य [हारिय] हारित सोमिलासशन्दाथै [कोसिय] कौशिक [पेल] पैल [संडिल्ल] शाण्डिल्यः [पारासज्ज] पाराशय [भरदाज] Jaslभिध भारद्वाज [वास्सिय] वात्स्य [सावणिय] सावर्ण्य [मित्तिय] मैत्रेय [अंगिरस] आंगि यज्ञवाटके रस [कासव] काश्यप [कच्चायण] कात्यायन [दक्खायण] दाक्षायण [सारव्वयायण] समागता नेक ब्राह्मशारद्वतायण [सौनगायण] शौनकायन [नाडायण] 'नाणायण [जातायण]. जातायण - णनामानि PM [अस्सायण] अश्वायण [दब्भायण] दर्भायण [चारायण] चारायण [काविय] काप्य बोहिय] बौध्य - [उवमन्नवा]. औपमन्यव · [तेज्जप्पभिइओ मिलिया होज्जा] आत्रेय आदि इकटे हुवे थे ॥९॥ .. :: .. :.:..: .::... भावार्थ-उस काल और उस समयमें उस पावापुरी मे एकसोमिल नामक ब्राह्मण के यज्ञ स्थल में यज्ञ क्रिया के लिए आये हुए इन्द्रभूति आदि ग्यारह ब्राह्मण अपने -अपने शिष्य परिवार युक्त होकर यज्ञ कर रहे थे वे ब्राह्मण ऋकूयजुसाम और अथर्व SCS ॥७३॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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