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• कल्पसूत्रे शब्दार्थे
॥४७०॥
रानियों ने श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिण किया, पश्चात् वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार कर चुकने के बाद फिर वे, सिंहसेन राजा को आगे करके खडी खडी विनय पूर्वक हाथ जोडकर भगवान् की सेवा करने लगीं । अर्थात् भगवान् की वाणी सुनने की इच्छा करने लगे ॥८॥
मूलम् - तेणं कालेणं तेणं समएणं तीए पावाए पुरीए एगस्स सोमिला - भिहस्स बंभणस्स जन्नवाडे जन्नकम्मम्मि समागया रिउजजु सामाथव्वाणं चउन्हं वेयाणं इतिहासपंचमाणं निघंटु छट्टाणं संगोवगाणं सरहस्साहं सारया वारया धारया, सडंगवी सद्वितंतविसारया संखाणे सिक्खाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसमयणे अन्नेसु य बहुसु बंभण्णरसु परिव्वायएस नए सुपरिणिट्टिया सव्वविबुद्धिनिउणा जन्नकम्मनिउणा इंदभूइपभिइणो
सिंहसेन
राज्ञः
सपरिवार - प्रभुसमीपा
गमनम्
॥४७०॥