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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥४६९॥ सिंहसेनराज्ञः सपरिवारप्रभुसमीपागमनम् के ठीक बीचों बीच के मार्ग से होकर निकलीं निकल कर जिस ओर महासेन उद्यान था, उस ओर आयीं, उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर से कुछ दूर पर रहे हुए तीर्थंकरों के अतिशय स्वरूप छत्रादिकों को देखा, देख कर उन सबों ने अपने २ [पृथक् २] यानों [रथों] को रुकवा दिया और वे उन यानों से नीचे उतरी, उतर कर उन अनेक कुब्जादिक दासियों से परिवृत होती हुई वे जहां श्रमण भगवान् महावीर थे वहां पर आयीं, आकर उन्होंने प्रभु के समीप जाने के लिये पांच प्रकार के अभिगमों को अच्छी तरह धारण किया । वे पांच प्रकार के अभिगम ये हैं-सचित्त द्रव्यों का परि त्याग करना-प्रभु के दर्शन करने के लिये जाते समय अपने पास सचित्त वस्तुओं को नहीं रखना, अचित्त वस्त्रादिकों का त्याग नहीं करना, विनय से अवनत गात्र-शरीर होना, विनय भार से नभ्रीभूत होना, प्रभु के देखते ही दोनों हाथों को जोडना, एवं प्रभु की भक्ति में मन को एकाग्र करना। इन पांच अभिगमों से युक्त सपरिवार उन ॥४६९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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