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कल्पसूत्रे
सशन्दाथै ॥४६७॥
सिंहसेनराज्ञः सपरिवारप्रभुसमीपागमनम्
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वह त्रिविध उपासना इस प्रकार है-काय से उपासना करना, वचन से उपासना करना एवं मन से उपासना करना । कायिक उपासना इस प्रकार से उसने की-प्रभु के समीप वे हाथ पावों को संकुचित करके आसन से बैठे । उनसे धर्म सुनने की इच्छा करने लगे, उन्हें बार बार नमस्कार करने लगे, पुनः नम्र होकर प्रभु के सम्मुख दोनों हाथों को जोडते हुए प्रभु की सेवा करने लगे। वचन से उपासना उन्होंने इस प्रकार | की-जो जो भगवान् कहते थे, उस पर राजा इस प्रकार कहते थे, हे भगवन् ! आप जैसा कहते हैं, हे भगवन् ! यह ऐसा ही है , हे भगवन् यह वैसा ही है, हे भगवन् ! आप ने जो कहा सो सत्य है, हे भगवन् ! यह देश शंका और सर्व शंका से सर्वथा । | रहित है, हे भगवन् ! आपका यह वचन हम लोगों के लिये सर्वदा वांछनीय है, हे भगवन् ! यह आपका वचन हम लोगों के लिये सर्वथा वांछनीय है, हे भगवन् ! यह आपका वचन हम लोगों के लिये सर्वदा और सर्वथा वांछनीय है । इस प्रकार राजा
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