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________________ सशब्दार्ये सिंहसेनराज्ञः सपरिवारप्रसुसमीपागमनम् 'कल्पसूत्रे ।। पर आये जाते ही वे पांच प्रकार के अभिगमन-सत्कारविशेष से युक्त होकर प्रभु के सन्मुख पहुंचे । वे पांच प्रकार के सत्कारविशेष इस प्रकार हैं-हरित फल फूल आदि ॥४६६॥ सचित्त द्रव्यों का परित्याग करना, वस्त्र आभरण आदि अचित्त द्रव्यों का परित्याग नहीं करना, भाषा की यतना के लिये अखण्ड अर्थात् जो सीया हुआ न हो ऐसे वस्त्र का उत्तरासङ्ग करना, जब से भगवान् दिखायी दें, तभी से दोनों हाथों को जोडना, और मन को एकाग्र करके भगवान् में लगाना । इस प्रकार इन पांच अभिगमों से एक युक्त होकर राजाने भगवान् महावीर प्रभु को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिण-अञ्जलि I पुट को दाहिने कान से लेकर शिर पर घुमाते हुए बायें कान तक लेजा कर फिर उसे घुमाते हुए दाहिने कान पर ले जाना और बाद में उसे अपने ललाट पर स्थापन करना -रूप आदक्षिण प्रदक्षिण किया, आदक्षिण-प्रदक्षिण कर के वन्दना और नमस्कार किया। वन्दना :नमस्कार कर के त्रिविध पर्युपासना से उनकी उपासना की। ॥४६६॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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