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कल्पसूत्रे सशब्दार्थ ॥४६५॥
सिंहसेनराज्ञः सपरिवारप्रभुसमापागमनम्
प्रकार कहा-हे देवानुप्रिय ! शीघ्र ही तुम पट्टहस्तिरत्न को सज्जित करो, साथ में घोडों हाथियों, रथों एवं उत्तम योधाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को भी सज्जित करना तथा शीलसेना देवियों के लिये भी बाहिर उपस्थानशाला में अलग २ रूप में चलने | में अच्छे एवं अच्छे बैलों वाले धार्मिक रथों को सज्जित करके ले आओ। आभिषेक्य | हस्तिरत्न के ऊपर सवार होकर पावापुरी नगरी के बीचमार्ग से होकर निकले निकल कर जहां महासेन उद्यान था वहां आये, आकर उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर के न अति समीप और न अति दूर-किन्तु कुछ ही दूर पर तीर्थंकरों के अतिशय स्वरूप छत्रादिकों को देखा, देखते ही उन्होंने अपने हाथी को खडा करवाया, हाथी के खडे होते वे उस हाथी से नीचे उतरे, नीचे उतरते ही उन्होंने इन पांच राजचिह्नों का
परित्योग किया, वे पांच राजचिह्न ये हैं-खड्ग, तलवार, छत्र, मुकुट उपानत्-पगरखे, ial एवं बालव्यजनी-चामर। फिर वे जहां श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे वहां
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