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________________ कल्पसूत्रे ।। की उत्पत्ति ८ चमर का उत्पात ९ एक सौ आठ जीवों का एक ही समयमे सिद्ध होना भगवतो धर्मदेशना जशब्दार्थे । और १० असंयतो की पूजा होना इन दस अच्छेरों में अभावित परिषद् रूप ) आश्चर्य४५६॥ चौथा अच्छेरा हुआ। धर्मदेशना के बाद वह श्रमण भगवान् महावीर सालवृक्ष के प्रकटनं च मूल के निकटवर्ती प्रदेश से निकले और निकल कर जनपद-विहार करने लगे-देश मे विचरने लगे उस काल उस समय मे पापापुरी नामक नगरी थी पाप से रक्षा करने वाली होने से पापा कहलाती है। आज कल वह 'पावा पुरी' है वह नगरी कैसीथी: सो कहते है वह ऋद्धा आकाश को स्पर्श करने वाले बहुत से प्रासादों से युक्त थी और ई जनों की बहुलता से व्याप्त थी, तथा स्तिमिता स्व-परचक्र के भय से रहित थी और समृद्धा धन धान्य आदि से भरी पूरी थी उस पावापुरी नगरी में सिंहसेन नामक राजा था। महा हिमवान् महामलय, मेरू और महेन्द्र पर्वतों के सार के समान सारवाली था लोकमर्यादा की स्थापना करने वाला होने के कारण महाहिमवान पर्वत के ॥४५६॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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