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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥४५५॥
भगवतोधर्मदेशना आश्चर्यप्रकटनं च
एशन
सुरो असुरो को उस परिषदमे भगवान् की जो धर्म देशना हुई, वह धर्म देशना केवलतीर्थकरों के कल्प मर्यादा का पालन करने के लिए ही हुई उस धर्म देशना के होने पर किसी भी जीवने विरति सावद्य व्यापार के परित्याग रूप विरति अंगीकार नहीं की तीर्थकर की धर्मदेशना हो और कोई भी जीव विरति अंगीकार न करे, यह घटना श्रीमहावीर स्वामी के सिवाय किसी तीर्थकर की परिषद् में कभी घटित नहीं हुई थी अर्थात् तीर्थकरों की देशना अमोघ होती है उसे श्रवण कर कोइ न कोइ भव्यजीव अवश्य ही संयम अंगीकार करता है। परन्तु महावीर स्वामी की यह देशना इस स्वरूपमे खाली गई। यह अभूत पूर्व घटना थी क्योंकी वहां मनुष्य नहीं थे अतएव दस अच्छेरों में यह चौथा अच्छेरा हैं दस अच्छेरे ये है १ उपसर्ग होना २ गर्भका संहरण होना ३ स्त्री का तीर्थकर होना ४ अभावितपरिषद् होना ५ कृष्ण का अपरकंका नामक धातकी खंडवर्ती राजधानी मे जाना ६ चन्द्र और सूर्य का असली रूपमे समवसरण मे आना । ७ हरिवंशकुल
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